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Thursday, June 2, 2016

अब प्रथम बार ''विकास'' नारे से प्राथमिकता तक

अब तक सिर्फ नारा रहा ''विकास'' पहली बार बना प्राथमिकताडॉ सौरभ मालवीय के मूल लेख का शोधित रूप। 
देश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार को दो वर्ष हो गए हैं। इन दो वर्षों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विश्वभर के अनेक देशों में यात्रा कर उनसे संबंध प्रगाढ़ बनाने का प्रयास किया है। जनकल्याण की अनेक योजनाएं शुरू की हैं। सरकार ने विकास का नारा दिया और विकास को ही प्राथमिकता दी। स्वास्थ्य सेवाओं के बारे में प्रधानमंत्री का कहना है कि यदि देश के एक करोड़ लोग गैस की छूट छोड़ सकते हैं, तो देश के डॉक्टर भी 12 माह में 12 दिन निर्धन प्रसूता माताओं को दे सकते हैं। देश में डॉक्‍टरों की कमी है, इसलिए डॉक्‍टरों की सेवानिवृति आयु 60-62 से 65 वर्ष कर दी जाएगी, जिससे डॉक्‍टरों की सेवा ली जा सकें और नये डॉक्‍टर तैयार किए जा सकें। 
वह कहते हैं कि यह स्वच्छता अभि‍यान गरीबों के लिए है। गरीब बीमार होते हैं, तो उनका रोजगार छिन जाता है, लोगों ने स्वच्छता अभि‍यान को अपना लिया है। प्रधानमंत्री मुद्रा योजना लेकर आए, ताकि जो लोग छोटा-मोटा काम करते हैं, वे बैंकों से पैसे लेकर अपने कार्य को आगे बढ़ा सकें। प्रधानमंत्री महिला शिक्षा पर बल दे रहे हैं, उनका कहना है कि जब तक देश की हर बेटी नहीं पढ़ेगी, नहीं बढ़ेगी, देश का ऋण रहेगा। कृषि और किसानों पर भी सरकार विशेष ध्यान दे रही है, जैविक खेती को बढ़ावा देने के साथ-साथ मिट्टी के रखरखाव पर भी बल दिया जा रहा है, इसके लिए सरकार ने मिट्टी स्वास्थ्य कार्ड योजना शुरू की है। सरकार ऐसी फसल बीमा योजना लाई है, जिससे किसान के खेत के अंदर काटकर रखी गई फसल को हानि पहुंचने पर उसे उसकी भी बीमा राशि मिल सकेगी। चीनी मिलें गन्ना किसानों को समय पर भुगतान करें इस बारे में भी प्रयास किया जाएगा। वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का सरकार का लक्ष्य है। गांवों को बिजली, पानी, सड़क जैसी सुविधाएं उपलब्ध कराने पर ध्यान दिया जा रहा है। 
वास्तव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ’राष्ट्र सर्वोपरि’ यह कहते ही नहीं, बल्कि उसे जीते भी हैं। विगत कुछ दशकों में भारतीय जनमानस का मनोबल जिस प्रकार से टूटा था और अब मानो उसमें उड़ान का एक नया पंख लग गया है और अपने देश ही नहीं, अपितु विश्वभर में भारत का सीना चौड़ा करके शक्ति संपन्न राष्ट्रों एवं पड़ोसी देशों से कंधे से कंधा मिलाकर कदमताल करने लगा है, भारत। 
किसी भी देश, समाज और राष्ट्र के विकास की प्रक्रिया में आधारभूत तत्व मानवता, राष्ट्र, समुदाय, परिवार और व्यक्ति ही केंद्र में होता है। अपने दो वर्ष के कार्यकाल में मोदी इसी मूल तत्व के साथ आगे बढ़ रहे हैं। दो वर्ष पूर्व जब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने पूर्ण बहुमत से केंद्र में सरकार बनाई तब इनके सामने अनेक चुनौतियां खड़ी थीं और जन अपेक्षाएं मोदी के सामने सर माथे पर। ऐसे में प्रधानमंत्री और उनके मंत्रिपरिषद के सहयोगियों के लिए चुनौतियों का सामना करते हुए, विकास के पहिये को आगे बढ़ाने की राह सरल नहीं थी। गत दो वर्षों से समाचार-पत्रों में भ्रष्टाचार, महंगाई, सरकार के ढुलमुल निर्णय, मंत्रियों का स्वेच्छाचार, भाई-भतीजावाद, परिवारवाद की सूचनाएं देखने को नहीं मिलतीं। 
किसी भी सरकार और देश के लिए उसकी छवि महत्त्वपूर्ण होती है। मोदी इस बात को पूरा समझते हैं इसलिए विश्व भर के सभी देशों में जाकर भारत को याचक नहीं, बल्कि शक्तिशाली और समर्थ देश के नाते स्थापित कर रहे हैं। नरेंद्र मोदी जिस पार्टी के प्रतिनिधि के रूप में आज प्रधानमंत्री बने हैं, उस भारतीय जनता पार्टी का मूल विचार एकात्म मानव दर्शन एवं सांस्कृतिक राष्ट्रवाद है और दीनदयाल उपाध्याय भी इसी विचार को सत्ता द्वारा समाज के प्रत्येक तबके तक पहुंचाने की बात करते थे। 
भारत में स्वतंत्रता के बाद शब्द विलासिता का उन्माद कुछ तथाकथित बुद्धिजीवियों ने चलाया। इन्होंने देश में तत्कालीन सत्ताधारियों को छल-कपट से अपने घेरे में ले लिया। परिणामस्वरूप राष्ट्रीयता से ओत-प्रोत जीवनशैली का मार्ग निरन्तर अवरुद्ध होता गया। अब अवरुद्ध मार्ग खुलने लगा है। संस्कृति से उपजा संस्कार बोलने लगा है। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का आधार हमारी युगों पुरानी संस्कृति है, जो शताब्दियों से चली आ रही है। यह सांस्कृतिक एकता है, जो किसी भी बंधन से अधिक सुदृढ़ और टिकाऊ है, जो किसी देश में लोगों को एकजुट करने में सक्षम है और जिसने इस देश को एक राष्ट्र के सूत्र में बांध रखा है। 
गत पांच दशकों में भारत के राजनीतिक नेत्तृत्व के पास विश्व में अपना सामर्थ्य बताने के लिए कुछ भी नहीं था। सच तो यह है कि इन राजनीतिक दुष्चक्रों के कारण हम अहिंसा को अपनी कायरता की ढाल बनाकर जी रहे थे। आज प्रथम बार विश्व की महाशक्तियों ने समझा है कि भारत की अहिंसा इसके सामर्थ्य से निकलती है, जो भारत को 60 वर्षों में प्रथम बार मिली है। सवा सौ करोड़ भारतीयों के स्वाभिमान का भारत अब खड़ा हो चुका है और यह आत्मविश्वास ही सबसे बड़ी पूंजी है। तभी तो इस पूंजी का शंखनाद न्यूयार्क के 'मैडिसन स्क्वायर गार्डन' से लेकर सिडनी, बीजिंग, काठमांडू और ईरान तक अपने समर्थ भारत की कहानी से गूंज रहा है। दो वर्षों के काम का आधार सुदृढ़ विश्वास को पूरा करता दिख रहा है। नरेंद्र मोदी को अपने विश्वास को सुदृढ़ कर के भारत के लिए और परिश्रम करने की आवश्यकता है। 
मोदी का एजेंडा है विकास अर्थात न्यूनतम मंत्रिमंडल से अधिकतम परिणाम का संकल्प।
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