रेल मंत्री डी. वी. सदानन्द गौड़ा के भाषण का सार
+ आवश्यक वस्तुओं की मूल्य वृद्धि रोकने के उपाए +राष्ट्रीय खाद्य प्रसंस्करण मिशन के अधीन 2014-15 में 180 करोड़ रुपये आवंटित
आवश्यक वस्तुओं की मूल्य वृद्धि रोकने के लिए सरकार ने हाल में निम्नलिखित उपाय किए हैं:
• गेहूं, प्याज, दालों के लिए आयात शुल्क घटाकर शून्य किया गया।
• खाद्य तेल (नारियल का तेल, वनोपज आधारित तेल 1500 डॉलर प्रति टन के न्यूनतम निर्यात मूल्य वाले 5 किलो के मिश्रित उपभोक्ता पैक को छोड़कर) तथा दालों (काबूली चना, ऑर्गेनिक दालों एवं लेंटिल- 10 हजार टन प्रतिवर्ष अधिकतम को छोड़कर) के निर्यात पर प्रतिबंध।
• दालों, खाद्य तेलों तथा खाद्य तिलहन जैसी चयनित आवश्यक वस्तुओं के मामले में समय-समय पर 30-9-2014 तक की अवधि के लिए भंडार रखने की सीमाएं लागू की हैं। • चावल, उड़द और अरहर में भावी कारोबार को निलंबित रखना।
• तिलहन और खाद्य तेलों के उत्पादन बढ़ाने के लिए 12वीं पंचवषर्यी योजना के मध्य तेल के बीजऔर ताड के तेल राष्ट्रीय मिश्न लागू किया जा रहा है। इससे तिलहनों के उत्पादन और उसकी खपत के बीच की खाई को पाटने में सहायता मिलेगी।
यह सूचना उपभोक्ता मामले खाद एवं जनवितरण राज्य मंत्री राव साहब पाटिल दानवे ने लोकसभा में एक लिखित उत्तर में दी।
वर्ष 2014-15 के मध्य खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों के उन्नयन/ संस्थापन / आधुनिकीकरण सहित राष्ट्रीय खाद्य प्रसंस्करण मिशन के लिए विभिन्न राज्यों/ केंद्रशासित प्रदेशों को 180 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है। सर्वाधिक आवंटन प्राप्त करने वाले पांच राज्यों में उत्तर प्रदेश (16.43 करोड़ रुपये), महाराष्ट्र (13.36 करोड़ रुपये), राजस्थान (11.84 करोड़ रुपये), मध्य प्रदेश (11.40 करोड़ रुपये) और आंध्र प्रदेश (11.38 करोड़ रुपये) शामिल हैं। प्रत्येक राज्य/ केंद्रशासित प्रदेश में यह धन खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों के उन्नयन/संस्थापन /आधुनिकीकरण की प्रौद्योगिकी योजना सहित राष्ट्रीय खाद्य प्रसंस्करण मिशन के लिए है, जिसके अधीन इच्छुक उद्यमियों द्वारा देश में खाद्य प्रसंस्करण इकाइयां स्थापित की जा सकती हैं।
उद्योगों के वार्षिक सर्वेक्षण 2011-12 के अनुसार देश में 36,881 पंजीकृत खाद्य प्रसंस्करण इकाइयां थीं। कृषि और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग राज्यमंत्री डॉ. संजीव कुमार बालयान ने आज लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में यह जानकारी दी।
रेल मंत्री डी.वी. सदानंद गौड़ा ने आज संसद में वर्ष 2014-15 का रेल बजट प्रस्तुत किया। रेल मंत्री के भाषण का सार इस प्रकार है :-
‘’अध्यक्ष महोदया,
मैं सम्मानित सदन के समझ वर्ष 2014-15 के लिए रेलवे की अनुमानित आय और व्यय का विवरण प्रस्तुत कर रहा हूं। मुझे गणतंत्र के इस मंदिर में खड़े होने का अवसर प्राप्त हुआ है और मैं देश की जनता का आभारी हूं जिन्होंने अपनी अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए हमें यहां चुनकर भेजा है।
मैं माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी का आभारी हूं जिन्होंने मुझ में विश्वास व्यक्त किया है और भारतीय रेलवे का नेतृत्व करने का बड़ा दायित्व मुझे सौंपा है। मैं इस दायित्व को पूरा करने का वादा करता हूं और न केवल भारतीय रेल का नेतृत्व में एक प्रगतिशील भारत के निर्माण का हर संभव प्रयास करने का भी वचन देता हूं। मुझे अपना प्रथम रेल बजट प्रस्तुत करते हुए अत्यंत हर्ष का अनुभव हो रहा है। भारतीय रेल, देश का अग्रणी वाहक होने के साथ-साथ भारतीय अर्थव्यवस्था की नींव और आत्मा भी है। उत्तर में बारामूला से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी तक और पश्चिम में ओखा से लेकर पूर्व में लेखापानी तक देश के प्रत्येक नागरिक के दिलों में इसकी गूंज सुनाई देती है। अध्यक्ष महोदया, हम सभी जानते हैं कि भारतीय रेल सभी क्षेत्रों, वर्गों और सम्प्रदायों से परे है और इसमें एक लघु भारत यात्रा करता है। बेंगलूरू की गलियों के एक जनसामान्य से लेकर कोलकाता में मछली विक्रेताओं तथा चहल-पहल भरे निजामुद्दीन स्टेशन तक, हर स्थान आपको इस देश का नागरिक भारतीय रेलवे से यात्रा करने के लिए उत्सुक मिलेगा।
माननीय अध्यक्ष महोदया, यद्यपि मुझे पदभार ग्रहण किए हुए कठिनता से एक माह हुआ है, मेरे पास माननीय संसद सदस्यों, सरकार में मेरे सहयोगियों, राज्यों, स्टेक होल्डरों, संगठनों और देश के विभिन्न कोनों से नई गाडि़यों, नई रेल लाइनों और श्रेष्ठ सुविधाओं के लिए अनुरोधों और सुझावों की बाढ़-सी आ गई है। मैं जानता हूं कि हर कोई यह अनुभव करता है कि उनके पास उन सभी चुनौतियों का समाधान है, जिनका सामना भारतीय रेलवे कर रही है, इस विशाल संगठन की भारी जटिलताओं और समस्याओं से परिचित होने से पूर्व मेरी भी ऐसी धारणा थी। अब मैं रेल मंत्री के रूप में इन अपेक्षाओं को पूरा करने में अपने बड़े दायित्वों से अभिभूत हूं।
अध्यक्ष महोदया, मुझे कौटिल्य के निम्नलिखित शब्दों का स्मरण होता है:
प्रजासुखे सुखं राज्ञ: प्रजानां च हिते हितम्।
नात्मप्रियं हितं राज्ञ: प्रजानां तु प्रियं हितम्।
जनता की प्रसन्नता में शासक की प्रसन्नता निहित होती है
उनका कल्याण उसका कल्याण होता है
जिस बात से शासक को प्रसन्नता होती है वह उसे ठीक नहीं समझेगा,
परन्तु जिस किसी बात से जनता प्रसन्नता होती है,
शासक उसे ठीक समझेगा।
- कौटिल्य का अर्थशास्त्र
भारतीय रेल इस उपमहाद्वीप के 7172 से अधिक स्टेशनों को जोड़ते हुए प्रतिदिन 12617 गाडि़यों में 23 मिलियन से अधिक यात्रियों को ढोती है। यह प्रतिदिन ऑस्ट्रेलिया की संपूर्ण जनसंख्या को ढोने के बराबर है। हम 7421 से अधिक मालगाडियों में प्रतिदिन लगभग 3 मिलियन टन माल ढोते हैं। अध्यक्ष महोदया, एक बिलियन टन माल यातायात से अधिक लदान कर चीन, रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका की रेलों के (सेलेक्ट क्लब) चुने समूह में भारतीय रेल ने प्रवेश करने की उपलब्धि अर्जित की है, अब मेरा लक्ष्य विश्व में सबसे अग्रणी वाहक के रूप में उभरने का है।
अध्यक्ष महोदया, जैसा आप जानती हैं, भारतीय रेल, यात्रियों को ढोने के अतिरिक्त कोयला भी ढोती है।
यह स्टील की ढुलाई करती है
यह सीमेंट की ढुलाई करती है
यह नमक की ढुलाई करती है
यह खाद्यान्नों और चारे की ढुलाई करती है
और यह दूध की भी ढुलाई करती है
इस प्रकार, भारतीय रेल व्यावहारिक रूप से सभी की ढुलाई करती है और यह किसी भी वस्तु को ना नहीं करती है, यदि उसे मालडिब्बे में ढोया जा सकता हो। सबसे महत्वपूर्ण है कि हम रक्षा संगठन की आपूर्ति श्रृंखला की रीढ़ बनकर, राष्ट्र की सुरक्षा में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
अध्यक्ष महोदया, जबकि हम प्रतिदिन 23 मिलियन यात्रियों को ढोते हैं, किन्तु अभी भी अधिक जनता ऐसी है, जिन्होंने अभी तक रेलगाड़ी में पैर तक नहीं रखा है। हम औद्योगिक समूहों को पत्तनों और खदानों से जोड़ते हुए, प्रतिवर्ष एक बिलियन टन से अधिक माल यातायात का लदान करते हैं, किन्तु अभी भी कई आतंरिक भाग, रेल संपर्क की प्रतीक्षा कर रहे हैं। यद्यपि विगत वर्षों में माल यातायात व्यापार निरंतर बढ़ रहा है, भारतीय रेल देश में सभी साधनों से ढोए जाने वाले कुल माल यातयात का 31% को ही ढोती है। ये ऐसी चुनौतियां है, जिनका हमें सामना करना है।
विविध प्रकार के दायित्व निभाने वाले, इस प्रकार के विशाल संगठन से, एक वाणिज्यिक उद्यम के रूप में आय अर्जित करने के साथ, एक कल्याणकारी संगठन के रूप में भी कार्य करने की आशा की जाती है। ये दो कार्य, रेलपथ की दो पटरियों के समान हैं, जो हालांकि साथ-साथ चलती हैं किन्तु कभी मिलती नहीं हैं। अभी तक भारतीय रेल इन दो विरोधात्मक उद्देश्यों में संतुलन बनाते हुए इस कठिन कार्य को निभाती रही है।
2000-01 में सामाजिक सेवा-दायित्व, सकल यातायात प्राप्तियों के 9.4% से बढ़कर 2010-11 में 16.6% हो गया। 2012-13 में इस प्रकार का दायित्व 20,000 करोड़ रु.से भी अधिक हो गया। इस वर्ष का कुल निवेश अर्थात बजटीय स्रोतों के अंतर्गत योजना परिव्यय 35,241 करोड़ रु.था। इस प्रकार समाजिक दायित्व के बोझ की राशि, बजटीय स्रोतों के अंतर्गत हमारे योजना परिव्यय के आधे से भी अधिक है।
अध्यक्ष महोदया, सामाजिक दायित्वों पर बजटीय स्रोतों के अंतर्गत अपने योजना परिव्यय के आधी से अधिक राशि व्यय करने वाला कोई भी संगठन, अपने विकास कार्यों के लिए कठिनता से ही पर्याप्त संसाधन जुटा सकता है।
तथापि, अध्यक्ष महोदया, भारतीय रेल अपने सामाजिक दायित्वों को पूरा करती रहेगी किन्तु कार्यकुशलता तथा गाड़ी परिचालन की संरक्षा के साथ समझौता किए बिना, एक सीमा के बाद इन दो परस्पर विरोधी उद्देश्यों में संतुलन बनाए रखना संभव नहीं है।
हमारे पास 1.16 लाख किमी. लंबाई का कुल रेलपथ, 63,870 यात्री डिब्बे, 2.4 लाख से अधिक माल डिब्बे और 13.1लाख कर्मचारी हैं। इसके लिए ईंधन वेतन और पेंशन, रेलपथ एवं यात्री डिब्बा अनुरक्षण और इससे भी अधिक महत्वपूर्ण संरक्षा संबंधी कार्य पर खर्च की आवश्यकता होती है। इन कार्यों पर सकल यातायात आय से होने वाली हमारी अधिकांश आय खर्च हो जाती है। वर्ष 2013-14 में सकल यातायात आय 1,39,558 करोड़ रूपये और कुल संचालन व 1,30,321 करोड़ था, जिसका परिचालन अनुपात लगभग 94% बनता है।
अध्यक्ष महोदया, इससे पता चलता है कि अर्जित किये गये प्रत्येक रूपये में से हम 94 पैसा परिचालन पर व्यय कर देते हैं। हमारे पास अधिशेष के रूप छह पैसा ही बचता है। यह राशि कम होने के अतिरिक्त, किरायों में संशोधन न किये जाने के कारण, इसमें निरंतर गिरावट आई है। अनिवार्यत: किए जाने वाले लाभांश और लीज़ प्रभारों के भुगतान के बाद वर्ष 2007-08 में यह अधिशेष 11,754 करोड़ रूपये था और वर्तमान वर्ष में 602 करोड़ रूपये होने का अनुमान है।
अध्यक्ष महोदया, रेलों द्वारा इस प्रकार जुटाए गये इस बहुत ही कम अधिशेष द्वारा संरक्षण, क्षमता बढ़ाने, अवसंरक्षण, यात्री सेवाओं और सुख-सुविधाओं को श्रेष्ठ बनाने के लिए कार्यों को वित्तपोषित किया जाता है।
मात्र चालू परियोजनाओं के लिए 5 लाख करोड़ रूपये अर्थात प्रतिवर्ष लगभग 50,000 करोड़ रूपये अपेक्षित हैं। इससे अपेक्षित राशित अधिशेष के रूप में उपलब्ध राशि के बीच भारी अंतर आ जाता है।
यद्पि इस अंतर को काटने के लिए विवेकपूर्ण प्रयास किये जाने चाहिए थे, परन्तु जो भाड़ा नीति अपनाई गई, उसमें युक्तिसंगत दृटिकोण की कमी रही। यात्री किरायों को लागत से कम रखा गया और इस प्रकार पैसेंजर गाड़ी के परिचालन में हानि हुई। यह हानि बढ़ती रही जो 2000-01 ने प्रति पैसेंजर किलोमीटर 10 पैसे बढ़कर 2012-13 में 23 पैसे हो गई, क्योंकि यात्री किरायों को सदैव कम रखा गया।
दूसरी ओर मालभाड़ा दरों को समय-समय पर बढ़ाया और उन्हें अधिक रखा गया जिससे यात्री क्षेत्र में होने वाली हानि की प्रतिपूर्ति की जा सके। परिणामस्वरूप माल यातायात निरंतर रेलवे से छूटता गया। विगत 30 वर्षों में कुल माल यातायात में रेलवे का अंश निरंतर कम हुआ है। अध्यक्ष महोदया, यह उल्लेखनीय है कि कुल माल यातायात में रेलवे का अंश कम होना, राजस्व को हानि होने जैसा है।
अध्यक्ष महोदया, यह बताने के बाद कि किस प्रकार राजस्व को गंवाया गया, अब मैं यह बताना चाहता हूं कि किस प्रकार निवेश में दिशाहीनता है।
परियोजनाओं को पूरा करने पर बल दिए जाने के बजाय, उन्हें स्वीकृत कर देने पर ध्यान दिया गया। गत 30 वर्षों के मध्य 1,57,883 करोड़ रूपए मूल्य की कुल 676 परियोजनाएं स्वीकृत की गईं, इनमें से केवल 317 परियोजनाओं को ही पूरा किया जा सका और शेष 359 परियोजनाओं को पूरा किया जाना शेष है, जिन्हें पूरा करने के लिए अब 1,82,000 करोड़ रूपए अपेक्षित होंगे।
गत 10 वर्षों में 60,000 करोड़ रूपय मूल्य की 99 नई लाइन परियोजनाओं को स्वीकृत किया गया, जिसमें से आज की दिनांक तक मात्र एक परियोजना को ही पूरा किया गया है। वास्तव में इसमें 4 परियोजनाएं तो ऐसी हैं जो 30 वर्ष तक पुरानी हैं, परन्तु वे किसी न किसी कारण से अभी तक पूरी नहीं हुई हैं। जितनी अधिक परियोजनाओं को हम इसमें जोड़ देंगे हम उनके लिए उतना ही कम संसाधन उपलब्ध करा पाएंगे और उनहें पूरा करने में उतना समय भी लगेगा।
यदि यही प्रवति जारी रखी गयी तो मैं निश्चित रूप से कह सकता हूं कि और अधिक हजारों करोड़ रूपए खर्च हो जाएंगे और इससे कठिनता से ही कोई प्रतिफल प्राप्त होगा।
अध्यक्ष महोदया, भारतीय रेलों की कभी न समाप्त होने वाली परियोजनाओं के बारे में बताने के बाद, अब मैं परियोजनाओं का चयन करने में किस प्रकार प्राथमिकता दी जाती है, उसका उल्लेख करता हूं। अति संतृप्त नेटवर्क में भीड़भाड़ को कम करने के लिए दोहरीकरण और तिहरीकरण के लिए किए जाने वाले निवेश से, रेलों को धन प्राप्त होता है। दूसरी ओर नई लाइनों का निर्माण करने से अधिकांशत: परिचालनिक लागत भी पूरी प्राप्त नहीं होती है, क्योंकि उसके अनुरूप मांग नहीं होती है।
गत 10 वर्षों में भारतीय रेल ने 3738 किलोमीटर नई लाइनों को बिछाने के लिए 41,000 करोड़ रूपए का निवेश किया है। दूसरी ओर इसने 5050 किलोमीटर के दोहरीकरण के लिए मात्र 18,400 करोड़ रूपए ही खर्च किए। यद्पि प्रणाली को सुदृढ़ बनाने के लिए यह प्राथमिकता वाला कार्य था।
संयोग से, मैं भारतीय रेल के बारे में किसी व्यक्ति द्वारा कही गई निम्नलिखित बात, को यहां उद्धृत करना चाहूंगा। मैं इसे तब तक नहीं समझ पाया, जब तक मुझे इन तथ्यों की जानकारी नहीं थी, जिनका मैंने अभी तक उल्लेख किया है। यह कथन इस प्रकार है:
‘’आपने ऐसे किसी व्यापार के बारे में नहीं सुना होगा, जिसका एकाधिकार हो,
जिसका ग्राहक आधार लगभग 125 करोड़ हो,
जिसकी 100% बिक्री अग्रिम भुगतान पर होती हो,
और उसके बाद भी उसके पास धन का अभाव हो।‘’
अध्यक्ष महोदया, अब तक भारतीय रेल की यही कहानी रही है।
अध्यक्ष महोदया, रेलवे द्वारा सामाजिक दायित्व का निर्वहन करना कोई मुद्दा नहीं है। परन्तु सामाजिक आवश्यकता के नाम पर लोक-लुभावन परियोजनाओं का चयन किया गया, जिनसे रेलवे को कठिनता से कोई राजस्व प्राप्त हुआ हो। सामाजिक दायित्व के नाम पर अलाभप्रद परियोजनाओं पर निवेश किया जाना जारी रहा। समग्रत: देखा जाए, तो कई वर्षों तक न तो इन परियोजनाओं से रेलवे को कोई प्रतिफल प्राप्त हुआ और न ही पूरी तरह से सामाजिक दायित्व ही पूरा हुआ।
इस त्रुटिपूर्ण प्रबंधन और उदासीनता से बहुत वर्षों से रेलवे धन के भारी आभाव का सामना कर रही है, ‘जो स्वर्णिम दुविधा के दशक’- वाणिज्यिक व्यवहार्यता और सामाजिक व्यवहार्यता के बीच चयन की दुविधा का परिणाम है।
अध्यक्ष महोदया, मुझे पता है कि मेरे पूर्ववर्ती सम्मानित मंत्री भी इस अनिश्चितता की स्थिति से परिचित थे, परन्तु उनके द्वारा इन परियोजनाओं की घोषणा करते समय, सदन में बजने वाली तालियां सुनने से प्राप्त होने वाले ‘नशे’ का, वे परित्याग न कर सके।
अध्यक्ष महोदया, कुछ नई परियोजनाओं की घोषणा करके, मैं भी इस सम्मानित सदन से तालियां पा सकता हूं, परन्तु यह कठिन स्थिति से गुजर रहे, इस संगठन के प्रति अन्याय करना होगा। मेरी इच्छा है कि रेल को स्थिति में सुधार लाकर, मैं वर्ष भर तालियां पाता रहूं।
भारतीय रेल की इस शोचनीय स्थिति को तत्काल ठीक किए जाने की आवश्यकता है। कुछ सुधारात्मक उपायों, जिनकी मैंने योजना बनाई है, में एक उपाय किरायों में संशोधन का रहा। यह एक कठिन परन्तु आवश्यक निर्णय था। अध्यक्ष महोदया, जैसाकि कहा गया है कि
यत्तदग्रे विषमिव परिणामे अमृतोपमम्।
‘’दवा खाने में तो कड़वी लगती है
किन्तु उसका परिणाम मधुर होता है’’
इस किराया संशोधन से भारतीय रेल को लगभग 8000 करोड़ रूपए का अतिरिक्त राजस्व प्राप्त होगा। यद्यपि, स्वर्णिम चतुर्भुज नेटवर्क को पूरा करने के लिए, हमें 9 लाख करोड़ रूपए से अधिक की और केवल एक बुलेट गाड़ी चलाने के लिए, लगभग 60,000 करोड़ रूपए की आवश्यकता है।
- वर्ष 2014-15 में उन्नत संचालन अनुपात के माध्यम से रेलवे 1.64 लाख करोड़ रूपए अर्जित करेगा
- रेल बजट में सुधार की दिशा में उठाए गए अनेक कदम, लोक-लुभावन उपायों से बनाई दूरी
- लागत बढ़ने के बाद भी रेलवे सामाजिक सेवा दायित्व पूरे करने के लिए प्रतिबद्ध
- रेलवे आरक्षण प्रणाली में सुधार
- 18 नई लाइनों और दोहरीकरण, तीसरी लाइन, चौथी लाइन और आमान परिवर्तन परियोजनाओं के लिए 10 सर्वेक्षण
- पांच जनसाधारण, पांच प्रीमियम, छह वातानुकूलित एक्सप्रेस, 27 एक्सप्रेस, 8 पैसेंजर नई गाडि़यां और 2 मेमू तथा पांच डेमू सेवाएं
- रेल बजट में सामरिक प्रबंधन की आवश्यकता वाले क्षेत्रों को चिन्हित किया
- खानपान सेवाओं में गुणवत्ता और स्वच्छता में सुधार पर बल
- रेल मंत्री डी. वी. सदानन्द गौड़ा के भाषण का सार
- कर्मचारियों के विचारों और अनुभव से लाभ उठाने के लिए अभिनव ऊष्मायन केन्द्र स्थापित किया जाएगा
- रेलगाड़ियों और स्टेशनों पर साफ-सफाई के लिए बजट में महत्वपूर्ण वृद्धि
- रेलगाड़ियों की गति बढ़ाने के लिए 100 करोड़ रू. की व्यवस्था
- यात्री सुविधाओं एवं स्टेशन प्रबंधन के लिए विशेष उपाय
- कागज़ रहित कार्यालय, मोबाइल आधारित नई सेवाएं और अगली पीढ़ी की टिकट आरक्षण प्रणाली, रेलवे की सूचना संबंधी पहल में शामिल
- बजट के समक्ष भारी धन की आवश्यकता और अधूरी परियोजनाओं की चुनौती
- वित्तीय निष्पादन 2013-14
- परियोजनाओं के कार्यान्वयन में देरी से निपटने के लिए परियोजना प्रबंधन समूह का गठन किया जाएगा
- भारतीय रेल की भूमि परिसंपत्तियों का अंकरूपण (डिजिटाइजेशन)
- कर्मचारी हित निधि में अंशदान बढ़ाया जाएगा
- यात्रियों की सुरक्षा और संरक्षा में सुधार के लिए उपाय
- रेलवे के लिए अधिक संसाधन जुटाने के प्रयास
- उपनगरीय यातायात को बढ़ावा, मुंबई के लिए दो वर्ष में 864 अतिरिक्त अत्याधुनिक ईएमयू गाडि़या
- घरेलू पर्यटन क्षमता का लाभ उठाने के लिए रेल पर्यटन को प्रोत्साहन
- पूर्वोत्तर में रेल विस्तार के लिए 54% अधिक धनराशि का आबंटन
- रेलवे बोर्ड स्तर पर परियोजना प्रबंधन समूह की स्थापना
- कृषि उत्पादों के संचलन के लिए 10 स्थानों पर तापमान नियंत्रित भंडारण की सुविधा
- ऊर्जा संरक्षण के लिए सौर ऊर्जा और बायो डीजल का उपयोग
अध्यक्ष महोदया, क्या यह उचित होगा कि इन निधियों की व्यवस्था करने के लिए किरायों और माल-भाड़ा की दरों में वृद्धि की जाए और उसका बोझ जनता पर डाला जाए। चूंकि यह अवास्तविक है, इसलिए इन निधियों की व्यवस्था करने के लिए मुझे वैकल्पिक उपायों पर सोचना होगा।‘’
मोदी का एजेंडा है विकास अर्थात न्यूनतम मंत्रिमंडल से अधिकतम परिणाम का संकल्प।
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